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Saturday, January 27, 2018

माँ

A poem of Umesh chandra srivastava

माँ तुम्हारी याद में ,
बरसों गुजारे हैं।
तुम्हारी बात के-ओ माँ ,
बहुत किस्से सँवारे हैं।
बड़ी मुद्दत हुई ,
अब आंचलों की ,
फिर ज़रूरत है ,
मगर हम क्या करें ,
जो सत्य है ,
स्वीकार करना है।
ज़माने में ,
बहुत चेहरे ,
मगर माँ ,
तेरा चेहरा तो ,
सभी से खूब लगता है।
तुम्हारी आँख में ,
ओ माँ ,
जहां  का नूर बसता है।


उमेश चंद्र श्रीवास्तव - 
A poem of Umesh chandra srivastava

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