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Tuesday, January 16, 2018

माघ मेला (चौपाई-3 )

A poem of Umesh chandra srivastava

जाके मन कछु नाहीं संदेहा , वह नर आई माघ कर सेवा ।
जनम मरण मुक्तन इहँ पाई , यही भूमि अतुलित हरषाई ।।

यही प्रयाग भूमी सुखदाई , वेद पुराण सबहि यह गाई ।
जो नर बसत प्रयाग-प्रयागा ,वह नर राम अनुज अनुरागा ।।

गावहि यहीं सब नर सुर संता , वेद पुराण यहां भगवंता ।
माघ माह भर सब सुर आवहिं , त्रिवेणी में सुखद नहावहिं ।।



उमेश चंद्र श्रीवास्तव- 
A poem of Umesh chandra srivastava 

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