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Thursday, December 28, 2017

लोकतंत्र का समाधान

A poem of Umesh chandra srivastava

मिमियाती बकरियां ,
खिसियाते सांड ,
और गुहार देती पब्लिक ,
कोई सुनने वाला है।
अब स्वयं का है अलाप ,
खुद कर लेते निर्णय ,
क्योंकि मिला है खज़ाना।
एक ओर नौनिहालों  के प्रति ,
तो दूसरी ओर किसान परेशान ,
कोई नहीं ध्यान।
वहीं तीसरी ओर ,
रच रहे दीप दान का मचान।
वाह रे राम ! वाह रे राम !!
तुम्हारी आराधना में ,
हो रहा चहुओर संधान।
कहतें हैं मंदिर बनेगा।
क्या यही है ,
अब लोकतंत्र का समाधान।


उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

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