month vise

Saturday, December 16, 2017

स्मृति

Poem by Umesh chandra srivastava

वह ह्रदय पटल की क्यारी
मन को मन में मथती  थी, 
 मैं सहम- सहम  सा जाता 
पर वह पवना करती थी। 


उसके ललाट से मुख पर ,
कुमकुम की बूँद बिहँसती। 
उसके सुन्दर मुखड़ों पर ,
आशा  की बूँद छिटकती। 

उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
Poem by Umesh chandra srivastava 

No comments:

Post a Comment

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...