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Thursday, December 28, 2017

लोकतंत्र का समाधान

A poem of Umesh chandra srivastava

मिमियाती बकरियां ,
खिसियाते सांड ,
और गुहार देती पब्लिक ,
कोई सुनने वाला है।
अब स्वयं का है अलाप ,
खुद कर लेते निर्णय ,
क्योंकि मिला है खज़ाना।
एक ओर नौनिहालों  के प्रति ,
तो दूसरी ओर किसान परेशान ,
कोई नहीं ध्यान।
वहीं तीसरी ओर ,
रच रहे दीप दान का मचान।
वाह रे राम ! वाह रे राम !!
तुम्हारी आराधना में ,
हो रहा चहुओर संधान।
कहतें हैं मंदिर बनेगा।
क्या यही है ,
अब लोकतंत्र का समाधान।


उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

Tuesday, December 26, 2017

एक बंद

A poem of Umesh chandra srivastava

ये , वो सड़क साफ हो गयी , लगता है वो आएंगे।
भ्रम की बातें फैला-फैला कर ,लगता है वो छाएंगे।
वोट की खातिर मारा-मारी ,एक दूजे को ख़ारिज कर।
अपना-अपना राग अलापें ,जन-मन को भरमायेंगे।

उमेश चंद्र श्रीवास्तव- 
A poem of Umesh chandra srivastava 

Sunday, December 24, 2017

लोकतंत्र ! सावधान !!



लोकतंत्र ! सावधान !!
आ गया मेहरबान। 
कितना बड़ा सत्य कहता ,
कुछ नहीं किया उन्होंने ,
केवल लूटने के सिवा !
वाह रे ! भाई वाह !!
                                 

                       -उमेश चंद्र श्रीवास्तव 

Saturday, December 23, 2017

गंग तीर मधु माघ महीना

Poem of Umesh chandra srivastava

गंग तीर मधु माघ महीना ,
दरस-परस सब विधिक सुदीना। 
जो आवत इन माघइ भाई ,
वह नर पुण्य बहुत बिधि पाई। 
यह मत सुमत पुराणहि गाई ,
जन-मत कहहिं बहुत अधिकाई। 
राम अनुज संग सीतहि आई ,
भरद्वाज मुनि अतिसुख पाई। 
गावहिं तुलसिदास यह वचना ,
उन सम कवन कवि करै रचना। 
बहुविधि तुलसी दास यह गावा ,
राम चरण वह अति-सुख पावा। 
कहत-गुनत तुलसी बहुभाखा ,
राम से अधिक नाहिं कोउ राखा। 
राम दरस करि मज्जन पहिले,
तुलसिदास रामहिं पग गहिले। 
(शेष फिर कभी.... )




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
Poem of Umesh chandra srivastava

Saturday, December 16, 2017

स्मृति

Poem by Umesh chandra srivastava

वह ह्रदय पटल की क्यारी
मन को मन में मथती  थी, 
 मैं सहम- सहम  सा जाता 
पर वह पवना करती थी। 


उसके ललाट से मुख पर ,
कुमकुम की बूँद बिहँसती। 
उसके सुन्दर मुखड़ों पर ,
आशा  की बूँद छिटकती। 

उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
Poem by Umesh chandra srivastava 

Friday, December 15, 2017

तो फिर क्या डरना



उनका कुछ भी कह देना ,
मज़ाक है क्या ?
लोकतंत्र के चौपहिये ,
कब- तक ,
बाजारवाद में रमोगे। 
कब-तक -
मालिकान के हुक्मों की ,
तामील करोगे। 
पेट की खातिर ,
रोटी के लिए ,
कब-तक मरोगे। 
जीवन की सच्चाई है मरना ,
तो फिर क्या डरना। 




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -


Thursday, December 14, 2017

स्मृति

Poem of Umesh chandra srivastava

वह सखी कुमारी कोमल ,
यादें भी पल-पल हंसतीं ,
कुछ याद सखी की बिहँसी ,
कुछ कसक टीस सी होती।

वह कोमल मनभावन थी ,
पावन मन में सोती थी ,
मैं चहक-चहक कर उसकी ,
रसबूंद सदा चखता था।  (फिर कभी... )



 उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
Poem of Umesh chandra srivastava 

Tuesday, December 12, 2017

भय का वातावरण दिखाया

Poem of Umesh chandra srivastava 

भय का वातावरण दिखाया,
भयाक्रांत सब लोग यहां। 
बैठक ,भोजन पर आमंत्रण ,
चर्चा है अब लोक , जहाँ। 
शाशन की मर्यादा ऐसी ,
निजता पर ही प्रश्न उठा। 
कब क्या कह दें शाशन वाले ,
इसका अब है मोल कहाँ।     (शेष कल...)



उमेश चंद्र श्रीवास्तव-
Poem of Umesh chandra srivastava 

Monday, December 11, 2017

स्मृति

poem of Umesh chandra srivastava 

क्यों मन प्रदीप्त के भीतर ,
वह भोली-भली सूरत ,
बनती है और बिगड़ती ,
वह भोली-भली कीरत। 

आंसूं आँखों से छलके ,
कुछ याद सखी की आयी ,
कुछ स्मृति सी मुस्काई ,
कुछ पल हर्षित से उलझे।    (फिर कभी... )




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem of Umesh chandra srivastava 

Sunday, December 10, 2017

पत्थर

poem of Umesh chandra srivastava

एक पत्थर सलीके से उछालो ,
आसमान साफ है।
कई समाधान हैं।
पर सलीके से -
पत्थर उछालना ,
देख-दाख के।
कहीं उछाला हुआ पत्थर ,
तुम्हें खुद ही ,
चोटिल न कर दे।
पत्थर है भाई।
संवेदनहीन है ,
ऐसा कह सकते हो।



उमेश चंद्र श्रीवास्तव - 
poem of Umesh chandra srivastava

Saturday, December 9, 2017

मुट्ठियां मत भींचो

poem of Umesh chandra srivastava 

मुट्ठियां मत भींचो ,
तोरियां मत चढ़ाओ। 
अंगार मत बोलो -
खोलो-अपने मन का द्वार ,
जहाँ प्रेम निश्छलता ,
ले रही है अंगड़ाई। 
सत्य को पहचानो ,
अंधता त्यागो ,
आगे खाई है ,
जहां से लौटना ,
मुश्किल है भाई ,
मुश्किल है भाई। 


उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem of Umesh chandra srivastava 

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...