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Tuesday, November 21, 2017

रमई काका -1

poem by Umesh chandra srivastava

रमई काका ,
बहुत याद आते। 
जब भी पानी की फुहारें-छिटकतीं। 
जब भी आँखों का पानी झरता। 
जब भी बेहयायी नाचती। 
जब भी लुटेरे-लूट जाते कुनबा। 
रमई काका ,
बहुत याद आते।     (जारी )




उमेश चंद्र श्रीवास्तव- 
poem by Umesh chandra srivastava

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