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Friday, August 4, 2017

राधिका तुम रहो-हम श्याम की मुरली बजाते हैं

poem by Umesh chandra srivastava 

                                (१)
राधिका तुम रहो-हम श्याम की मुरली बजाते हैं ,
उसी में रीझ जाओ तुम-यहां हम गुनगुनाते हैं।
बड़े खामोश लमहे थे , मिले थे हम जहाँ 'औ' तुम ,
उसी अनुराग का ही सिलसिला अब कुछ बढ़ाते हैं।
                                (२)
कभी तुम हास लिखते हो ,कभी परिहास लिखते हो ,
जगत के ये मनुज हैं जो ,उन्हीं की बात लिखते हो।
तुम्हारी दृष्टि पैनी है ,तुम्हारे तीर हैं सुन्दर ,
लपेटे में नहीं आते ,तुम सीधी बात लिखते हो।




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 

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