month vise

Tuesday, August 22, 2017

दो बिम्ब

poem by Umesh chandra srivastava
                 
                    (१)
आस्था का मंदिर बनवाने से बेहतर ,
आस्था का बीज बोया जाये।
समदर्शी बनो-भेद-भाव  त्याग ,
चलो प्रेम का फूल खिलाया जाये।
                   (२)
कभी अनुदान की बातें , कभी निष्प्राण सी घातें ,
समय का चक्र ऐसा है -मिले सब बात की बातें।
अनुग्रह कर रहे हैं जो-समझ लो स्वार्थ कोई है ,
भला बोलो इस दुनिया में कहाँ सौगात की बातें।




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 

Friday, August 18, 2017

बड़े कवि अगर हो ,लिखो बात ऐसी - 4

poem by Umesh chandra srivastava

बड़े कवि अगर हो ,लिखो बात ऐसी ,
धरा का अँधेरा सभी मिट ही जाए।

इन्हें भी हो मालूम ये देखें ज़रा सा,
ये राजाओं का भी करम देख लें कुछ। 
ये ए. सी.  में बैठे बहुत बात करते ,
उन्हें खूब सराहें , मगर वहं न भी जाएँ। 

कहो इनसे वह भी संशोधन कराएं ,
नियम यह बनाएं-वो सरहद पे जाएँ। 
लिखो बात यह भी वो जनता जनार्दन से-
कहें जो करें अपनी निष्ठां दिखाएँ। 
नहीं मुख से भाषण सुनाएँ-सुनाएँ ,
अगर हों वतन के लिए -बात मानें। 
वो सरहद पे जाएँ ,वो सरहद पे जाएँ। 


उमेश चद्र श्रीवास्तव- 
poem by Umesh chandra srivastava 

Sunday, August 13, 2017

बड़े कवि अगर हो ,लिखो बात ऐसी-3

poem by Umesh chandra srivastava

बड़े कवि अगर हो ,लिखो बात ऐसी ,
धरा का अँधेरा सभी मिट ही जाए।

(गतांक से आगे )


पुरंदर बने हम यहां घूमते हैं ,
वहां अपने बेटे ही तन झोंकते हैं।
लिखो बात उनकी वतन के लिए जो ,
वतन पे मरे जो , वतन के लिए हों।

ये नेता , मिनिस्टर को भी सीख देदो ,
वतन के लिए वो भी सरहद पे जाएँ।
खुले मंच पे न ये गालें बजाएं ,
कहो हाँथ ले के संगीनें वहं जाएँ। (क्रमशः कल )






उमेश चन्द्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 

Friday, August 11, 2017

बड़े कवि अगर हो ,लिखो बात ऐसी-2

poem by Umesh chandra srivastava


बड़े कवि अगर हो ,लिखो बात ऐसी ,
धरा का अँधेरा सभी मिट ही जाए।

(गतांक से आगे )

पूरी उम्र उनने करी है हिफ़ाज़त ,
ये नेता मगर बात कुछ बोलते हैं।
कहो इनसे जाये 'औ' देखे वो सरहद ,
जहां पे सिपाही लड़े जा रहे हैं।

ख़ुशी में जो झूमे वतन प्रेमी सब जन ,
उन्हें भी कहो-अब संगीने उठायें।
नहीं ठोक ताली यहां बजबजायें ,
वो भी जाके थोड़ा ही बाजू लड़ायें।(क्रमशः कल )


उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 

Thursday, August 10, 2017

बड़े कवि अगर हो ,लिखो बात ऐसी

poem by  Umesh chandra srivastava 
 
बड़े कवि अगर हो ,लिखो बात ऐसी ,
धरा का अँधेरा सभी मिट ही जाए। 
वो फूलों की बातें , निगाहों की शोखी ,
मगन हो सजन के लिए लिख रहे हो। 

तो छोड़ो बताऊं लिखो तुम वतन पे ,
जो सैनिक खड़े हैं वहां सीना तने। 
मग्न होके उनका ही धीरज बढ़ाओ ,
वतन के लिए जो ,वतन के हैं प्रेमी।   (क्रमशः  कल )





उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by  Umesh chandra srivastava 

Tuesday, August 8, 2017

प्रेम का घनत्व कुछ ज्यादा है

poem by Umesh chandra srivastava

                           -१-
प्रेम का घनत्व कुछ ज्यादा है ,
इसीलिए सब कुछ आधा-आधा है।
वरना कुछ जनों की दुश्वारियां देखिये ,
बाप-बेटे में कुछ भी नहीं साझा है।

                          - २ -
वो रोज़ आते हैं सुबह से शाम तलक रहने के वास्ते ,
रात होते ही चले जाते हैं ,सब बंद किये।
अब तो ज़माना है देर रात तलक , लोग करते हैं ,
सारी तिज़ारत ,छल-प्रपंच ,दंद-फंद अपने लिए।




उमेश चंद्र श्रीवस्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 

Sunday, August 6, 2017

मुरलीधर को यह राखी बहन बांधती

poem by Umesh chandra srivastava 

मुरलीधर को यह राखी बहन बांधती ,
अब हमारी तुम रक्षा करो भाई तुम। 
हंस के बोले कन्हैया-क्या चहिये तुम्हें ?
हंस पड़ी तब सुभद्रा मगन हो गयी। 
भाई से बस बहन की ये चाहत सुनो ,
रक्षा बंधन अमर हो बहन-भाई का।  
युग-युगों से यह बंधन बढ़े रात-दिन ,
भाई खुश-खुश रहे बहन भी हो मगन। 
ये लगन-ये दुलारा सा प्रेम प्रहर ,
हर समय गूंजे बहना का दिल हो सघन। 
भाई-बहनों का त्यौहार फलता रहे ,
प्रेम की गूँज से ये जहां हो मगन।  




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 






Saturday, August 5, 2017

ये ईंगला ,ये पिंगला , शुषुम्ना ये नाड़ी

poem by Umesh chandra srivastava 

                        (१)
ये ईंगला ,ये पिंगला , सुषुम्ना ये नाड़ी ,
सभी कुछ तनों में बने तुम अनाड़ी। 
कहाँ खोजते फिरते उसको भरम में ,
तुम्हीं हो अगोचर तुम्हीं हो खिलाड़ी। 
                        (२ )
ये कवि का मंच है कविता दिवस हम सब मनाएंगे ,
उन्हें हम याद करके छंद 'औ' कुछ गीत गाएंगे। 
लिखे हैं गीत उनने कुछ सलोने काव्य में देखो ,
बड़ा ही मार्मिक चित्रण 'औ' सुन्दर बोल पाएंगे। 



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 

Friday, August 4, 2017

राधिका तुम रहो-हम श्याम की मुरली बजाते हैं

poem by Umesh chandra srivastava 

                                (१)
राधिका तुम रहो-हम श्याम की मुरली बजाते हैं ,
उसी में रीझ जाओ तुम-यहां हम गुनगुनाते हैं।
बड़े खामोश लमहे थे , मिले थे हम जहाँ 'औ' तुम ,
उसी अनुराग का ही सिलसिला अब कुछ बढ़ाते हैं।
                                (२)
कभी तुम हास लिखते हो ,कभी परिहास लिखते हो ,
जगत के ये मनुज हैं जो ,उन्हीं की बात लिखते हो।
तुम्हारी दृष्टि पैनी है ,तुम्हारे तीर हैं सुन्दर ,
लपेटे में नहीं आते ,तुम सीधी बात लिखते हो।




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 

Wednesday, August 2, 2017

तुम्हारा काव्य सुन्दर है ,सभी सम्भाव्य सुन्दर है

poem by Umesh chandra srivastava 

                                 (१)
तुम्हारा काव्य सुन्दर है ,सभी सम्भाव्य सुन्दर है ,
मनुजता के चितेरक तुम ,तुम्हारा राग सुन्दर है। 
कोई पढ़ ले सहजता से , तुम्हारी लेखनी सुन्दर ,
महाकवि तुम उपासक हो , तेरा अनुराग सुन्दर है। 
                                 (२)
हरण जब सीय का होता , तभी सब राम रोते हैं। 
हरण जब चीर का होता ,तभी घनश्याम होते हैं। 
कहो फिर क्या मिलेंगे ,राम 'औ' घनश्याम दोनों अब ,
मिलेंगे धूर्त , भोगी लोग ,अब अविराम रोते हैं। 




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 

Tuesday, August 1, 2017

हुए थे मैथिली जो उर्मिला का गीत गए थे

poem by Umesh chandra srivastava 

                           (१)
हुए थे मैथिली जो उर्मिला का गीत गए थे ,
लखन 'औ' उर्मिला का बहुत बिधि लक्षण बताये थे। 
जहां सीमित रहे तुलसी वहीं का बिम्ब टटोला है ,
सुधी जन देख लो 'साकेत' में क्या बिम्ब खोला है। 
                           (२)
एक लीला धारी ठहरे-मनमोहन घनश्याम रे ,
दूजे धनुष चलाने वाले,राम-राम अविराम रे। 
दोनों का था कर्म विलक्षण-कर्मरत रहे जीवन भर ,
आशाओं के पुंज रहे वो ,राम-राम 'औ' श्याम रे। 



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...