month vise

Friday, July 28, 2017

बेटियां हैं भवन ,बेटियां हैं सवन

poem by Umesh chandra srivastava 

बेटियां हैं भवन ,बेटियां हैं सवन ,
बेटियों से सजा है यह पूरा वतन। 
बेटियों के ही बल पे चमन फूल है ,
बेटियों से मगन है ये पूरा गगन। 

धूल पर चल रहीं ,शूल में पल रहीं ,
इनको धूपों में पाला गया ये पाली। 
इनपे बंदिश अनेकों पिता-मात की ,
फिर भी देखो चमन में खिली ही खिली। 

अब रुदन का ज़माना नहीं रहा गया ,
बेटे-बेटी में फर्क नहीं रह गया। 
बेटा भी है पढ़े ,बेटियां पढ़ रहीं ,
देखो अब तो सदा बेटियां बढ़ा रहीं। 



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 

No comments:

Post a Comment

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...