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Friday, July 28, 2017

बेटियां हैं भवन ,बेटियां हैं सवन

poem by Umesh chandra srivastava 

बेटियां हैं भवन ,बेटियां हैं सवन ,
बेटियों से सजा है यह पूरा वतन। 
बेटियों के ही बल पे चमन फूल है ,
बेटियों से मगन है ये पूरा गगन। 

धूल पर चल रहीं ,शूल में पल रहीं ,
इनको धूपों में पाला गया ये पाली। 
इनपे बंदिश अनेकों पिता-मात की ,
फिर भी देखो चमन में खिली ही खिली। 

अब रुदन का ज़माना नहीं रहा गया ,
बेटे-बेटी में फर्क नहीं रह गया। 
बेटा भी है पढ़े ,बेटियां पढ़ रहीं ,
देखो अब तो सदा बेटियां बढ़ा रहीं। 



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 

Thursday, July 27, 2017

दो मुक्तक

Umesh chandra srivastava's poem

                  (1)
शब्द को कुछ अर्थमय विस्तार दो,
बिम्ब में भावों का बस संचार दो।
वह नियंता है स्वयं ही रच रहा,
बात के उसके ही बस गति सार दो।

                    (2)
चार पहर से सोच रहा था, तुम भी आओ तोता-मैना,
बरबस निरस-निरस मन होता, तुम ही खिल जाओ तोता-मैना।
 चाँद चकोरी बिरहन तडपे, मत भरमाओ तोता-मैना,
आप तो सहज-सहज रहने दो, तुम भी आओ तोता मैना





उमेश चंद्र श्रीवास्तव- 
Umesh chandra srivastava's poem 

Tuesday, July 25, 2017

माँ की दुआ

Umesh srivastava's poem

सुखद चंदिनी की मगन रात थी वह,
छिटकते संवरते बदल हो रहे थे।
थी मध्यम सी पीड़ा- मगर मन में हर्षित,
निहारे पड़ी थी वह निज लाल को बस।
वह कहती चमकता सा जीवन हुआ है,
चमन में कमलदल खिला है खिला है।
सुखद जोग है यह ललन को लिए मैं,
हूँ हर्षित, मैं पुलकित मगन हो रही हूँ।
यही कल खिलायेगा जीवन की नदियां,
धरा पर बनाएगा अपना स्वयं पथ।
यही मैं दुआ दे रही हूँ तुम जाओ,
चमन में हसो अपना बादल बनाओ।



उमेश चंद्र श्रीवास्तव-  

Umesh srivastava's poem 

Thursday, July 20, 2017

राष्ट्र के नाम ,नए महामहिम को



हे श्रेष्ठ नमन ,श्रद्धा-पूजा-अर्पण ,
पुष्पों का सुन्दर हार लिए।
है नमन श्रेष्ठ भारत सूत को ,
भावों का पुष्प पराग लिए।

गौरव भारत पर होता है ,
जब आते ऐसे पुण्य पुरुष।
नित नूतन भव्य विचार लिए ,
भारत का गौरव मान लिए।

हिम चोटी उत्तम शिखर बढ़े ,
नदियों में स्वच्छता और बढ़े।
मानव में प्रेम-सहिष्णु बढ़े ,
जीवन में सुगमता आ जाये।

नव चेतन मन हो स्वच्छ-स्वच्छ ,
उसमें किसलय अनुराग बढ़े।
समतल भू-भाग हों हरे-भरे ,
उसमें बीजों का हार बढ़े।

आओ मिलजुल भारत वासी ,
अमनों के प्रति अनुराग बढे।
नैतिकता नूतन सजग तने ,
मनुजों में नव्या विचार बढ़े।


उमेश चंद्र श्रीवास्तव -

Sunday, July 9, 2017

मेरे जीजा तेरे चरणों में

poem of Umesh chandra srivastava

(50वीं शादी के सालगिरह की पवन बेला पर)

भावों के पुष्प चढ़ाऊंगा , मेरे जीजा तेरे चरणों में ,
रिश्ता नाते दुलराउंगा , मेरे जीजा तेरे चरणों में।

तुम जब बोले-सच्चा बोले , सच्चा तो कड़ुवा होता है ,
कुछ को भाता , कुछ तुनुक जाते , मेरे जीजा तेरे चरणों में।

आदर बहु है सम्मान बहुत ,ह्रदय से बातें करता हूँ ,
जो योग्य रहा ,मंजूर करो , मेरे जीजा तेरे चरणों में।

आशा की पुलकित छाँव में , बादल के सुनहरे गांवों में ,
तुम चिरजीवी बनकर फैलो , मेरे जीजा तेरे चरणों में।

कुछ श्वेत पत्र जीवन में भी-जीवन को रसासिक्त करते ,
आगंतुक सब चेहरे-मोहरे , मेरे जीजा तेरे चरणों में।

जो भी बीता सब अच्छा था , शिकवे की बहारें कभी न हों ,
सच्चा जीवन आगे भी हो , मेरे जीजा तेरे चरणों में।





उमेश चंद्र श्रीवास्तव -

Friday, July 7, 2017

गीत गाता हूँ ,तुम मुस्कराती रहो


गीत गाता हूँ ,तुम मुस्कराती रहो ,
भाई-बहनों का प्रेम, बढाती रहो।
जो तुम्हारी हुईं दुहिता -तुम तो ऐ ,
उनको आशीर्वचन से लुभाती रहो।

कौन कब है यहां ,कौन जाता कहाँ ,
सुख के सागर में गोता लगाती रहो।
वो मिले तुमको-उनको ही चंदा समझ ,
सुख की सुन्दर बयारें चलाती रहो।

आज वो है बेला-तुमको कहता हूँ मैं ,
ज़िंदगी में अमर प्रेम गाती रहो।
सुख की बगिया खिले-प्रेम-ही-प्रेम हो ,
प्रेम के ही चमन में नहाती रहो।

बाल बच्चे , जो नाती 'औ' पोता हुए ,
तेरे आँचल में सारे पगे हैं , बढ़े।
जमाताओं को खुश कर-सदा प्रेम दो ,
सारे मायके वालों को मिलाती रहो।



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...