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Thursday, June 1, 2017

मैं हूँ

poem by Umesh chandra srivastava

जब हमारे पास,
कुछ भी नहीं था ,
तब तुम थे।

आज हमारे पास ,
सब कुछ है ,
पर तुम नहीं हो।
बस यादें हैं ,
धड़कन है ,
और मैं हूँ।

मुझे याद है ,
जब तुम सोते में ,
मुझे जगा देते।
और अपने बाँहों का ,
फूलहार डाल,
मुझसे बतियाते ,
पुचकारते ,दुलारते ,
और प्यार करते।
कितना अच्छा लगता।
पर आज कहाँ रहा ,
वह सब।
जो तुम्हारे होने से ,
होता था।

अब कहाँ रही ,
वह प्रेम की टीस ,
जो तुम्हारे होने से ,
खिल उठता था।
अब तो पतझड़ है ,
अंगड़ाई है ,
देहं है ,
और मैं हूँ।




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -










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