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Tuesday, May 2, 2017

तुमको तो क्या कहें हम



तुमको तो क्या कहें हम ,
तुम बेहिसाब हो।
रातों को जागते हो ,
दिन में विराम है।
संतों की यही बाणी,
भोर में राम है।
रातों के गहरुएपन ,
कि क्या मिसाल है।
तुमने तो पढ़ा गीता -
न कोई किताब को।
बस धुन में जीते अपने ,
तुम क्या हिसाब हो ?
गैरों पे करम करते ,
अपनों को त्याग तुम।
लाइक में रात होते ,
गैरों से बात खूब।
अपनों से मुँह छिपाते ,
तुम्हें क्या मिसाल दें।
क्या इस तरह से जीवन ,
संगत में बनेगा।
क्या होगा अब तुम्हारा ,
तुम तो तबाब हो।



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -

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