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Wednesday, April 19, 2017

प्रेम का काव्य लिखना बहुत चाहता

poem by Umesh chandra srivastava 

प्रेम का काव्य लिखना बहुत चाहता। 
प्रेम की सब कला से मैं महरूम हूँ। 
उसका मुख है कि चंदा नहीं कह सका ,
उसके अधरों का पंखुड़ नहीं सह सका। 
मुस्कुराई तो पूरा जहाँ ही हिला ,
उसको यह भी तो बातें नहीं कह सका। 
       प्रेम का काव्य लिखना बहुत चाहता। 

वह दिवस भोर है या है तेजोपहर ,
उसके रूपों की गर्मीं नहीं सह सका। 
वह मधुर रात है या कि संध्या पहर ,
उसको यह भी तो नाम नहीं दे सका। 
      प्रेम का काव्य लिखना बहुत चाहता। 

बात आयी मिलन की पिछड़ मैं गया ,
दुनियादारी की बातों से भय खा गया। 
वह तो कहती रही राज की बात है ,
पर रज़ाई उलटने से डरता रहा। 
अब कहें क्या उसे सब मेरा दोष है ,
चाहे कुछ भी कहो बल नहीं कर सका। 
      प्रेम का काव्य लिखना बहुत चाहता। 


उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 

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