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Saturday, March 11, 2017

फिर गाँवों का पोखरा पानी

poem by Umesh chandra srivastava

फिर गाँवों का पोखरा पानी ,
फिर गड़ही बिसात बढ़ाई।
होली के मौसम में बंधु ,
हरिया भौजी रंगी-रंगी।
उसका मुखड़ा अब चकोर है ,
चंदा घूमें गांव यहाँ।
पकड़ चकोरी को धर पटको ,
मल-मल के गुलाल यहां।
गाय के  गोबर से साने वो ,
माटी पोतें खड़े-खड़े।
बन्धु यह गाँवों की होली ,
इत-उत देखा यहाँ-वहां।
कजरी, होली, बैसाखी हो ,
सब रंग मिलता यहाँ-यहाँ।
गांव की होली रंगत ऐसी ,
बौराया मन दिखे यहाँ।
कोई सुरा के सुरूर में ,
कोई में रंग चढ़ा बहुत।
माझी काका खूब ललकारें ,
मत छोड़ो तुम भौजी को।
रंग डालो रंगत हो ऐसी ,
सारा बैर मिटा डालो।
यही सुहाना मैसेज होली ,
प्रेम में बरसे रंग यहाँ।




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 

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