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Saturday, February 4, 2017

बेटियां


बेटियां गुल खिलाती यहाँ से वहाँ ,
हम सभी तो उसी की वजह से हुए। 
वो है बेटी कहीं ,कहीं पे माँ बनी ,
वह है पत्नी ,बहन ,बुआ ,दादी घनी। 
उसका ही धन ,उसी का है सारा जगत ,
वह ही उर्बी बनी -सबको ठौर दिया। 
गर धरातल न हो ,तो फिर बोलो कहाँ -
हो कहाँ पे खड़े 'औ' कहाँ- सो ,रहो। 
उसकी नेकी पे चलता है सारा जहाँ ,
वह तो तोहमत सहे ,व्यंग्य बाण भिदे। 
उसका करतब मनोहर-सहज है सरल ,
देखो-माँ-बेटी -नाम तो मोहक बहुत। 
उसने सब कुछ सहा -पर मगर क्या कहा ?
देखो सीता भी तो बेवजह हर गयी। 


                                                                                                                                   .....क्रमशः 



उमेश चंद्र श्रीवास्तव- 

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