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Thursday, February 23, 2017

चाँद-तारों की देखो हैं आयी बारात

poem by Umesh chandra srivastava

चाँद-तारों की देखो हैं आयी बारात ,
चाँद दुल्हा बना ,चांदनी है दुल्हन । 
देखो उनका तो सहयोग इतना घना ,
चाँद निकले तभी चांदनी भी रहे । 

चाँद इठला के कहता-चंदनिया को ,
तुम हमारे से हो ,हम तुम्हारे से हैं। 
राग कितना अनोखा सरल लग रहा ,
बात उनकी सुनो'औ 'अमल करो तुम। 

माना चन्दा-चन्दनियां तो शास्वत रहे ,
हम तो मानव हैं ,कर्मों से शास्वत बनें। 
वो निगाहें करम , वो नज़ारे सनम ,
डूब जायें ये रंगत ,ये संगत भला। 

ज़िन्दगी तो बताओ है केवल कला ,
इस कला में चलो झूमें मस्ती करें। 



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava

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