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Sunday, January 8, 2017

मन्द-मन्द चले पुरवाई

मन्द-मन्द चले पुरवाई ,
मन अंदर से उमड़े छंद।
नन्द किशोर ठुमुक ठुम नाचैं ,
तन-मन हो जाये अनंद।
मुरलीधाम अधर पट बिहंसै ,
नयनन से बरसे गुलमंद।
तिलक ललाट पे अतिशोभित हो ,
पांव पैजनिया छम-छम-छम।
यशोदा नाचैं ,देवकी झूमैं ,
सखियाँ ,गोप भये स्वच्छंद।




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -

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