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Friday, January 27, 2017

लिखते रहोगे बात अपने आप बनेगी


लिखते रहोगे बात अपने आप बनेगी ,
कुछ शब्द बुनावट कुछ छंद-वंद सब।
लय में खिलेगा बिम्ब मुस्कान तनेगी,
क्या भाव हैं विचार सभी निखर के निकले।
बिम्बों के धरा पर पूरी सौगात बनेगी ,
कबीरा के भाव देख लो तुलसी को निहारो।
मीरा की तान में न सही राधा की रागिनी ,
बस साधना रत हो खुदी कविता ही खिलेगी।
माँ के गर्भ से तो कोई-सीख कर नहीं आता ,
जीवन के अनुभवों से-वह गीत छनेगी।
आओ विचार कर लें सभी मिल बैठ कर यहाँ ,
कृष्णा ,रहीम-राम की सुध आप बनेगी।


उमेश चंद्र श्रीवास्तव -

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