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Thursday, January 19, 2017

कुछ समझौते करने पड़ते-1

कुछ समझौते करने पड़ते ,
मुख से निकल गयी कुछ बातें,
उसको अमल में धरने पड़ते। 

हालातों के समय चक्र में ,
कई मुखौटे दिख जाते हैं। 
किसको अपना कहें ,बेगाना ,
सब तो बात पे अड़ जाते हैं। 

वह जो निर्णायक बन बैठे ,
उनको भी सब पता नहीं है। 
बतलाते केवल वह हैसियत,
अपना क्या हैं  ,चुप रहते हैं?

 समय चक्र की धुरी बिंदु पर ,
हालातों से सब हैं खिसकते। 
किएको अपना माने यहाँ पर ,
सब तो चतुर परिंदे निकले। 

चलिए अब क्या जो होना था ?
होकर वह अब सफल हुआ है। 
वह तो अपना अहम् भरेंगे ,
हम रिरियाते घूमे ऐसे। 




                                                                                                                                              .........शेष कल 
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -

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