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Thursday, December 8, 2016

भारत के मुखबोलों तुमने

भारत के मुखबोलों तुमने,
सारी हकीकत कह डाली।
वतन हमारा ,सुन्दर मुखड़ा ,
कथा-कहानी है पाली।
रोज सवेरे उठ कर देखो ,
सुन्दर भाव ही आते हैं।
ह्रदय पटल के अंतर मन में ,
परत सभी खुल जातें हैं।
कहाँ-कहाँ अच्छा होता है ,
कहाँ घिरी है दुःख रजनी ,
कहाँ अबोध दुलार जाता ,
कहा दुहिता है संम्भली।
सब कुछ सुबह बता जाते हैं ,
अंतर मन में देखो तो।
बड़े सलोने सहज ढंग से ,
धीर धरे तुम सोचो तो।
वह देखो अम्बर पे लालिमा ,
छिटक रही है भोरों की।
इधर धरा पर हरी घास है ,
डोलो रही मुखबोलों की।
उधर दौड़ता बच्चा देखो ,
किलकारी की गूँज लिए।
इधर तोतली बोली कह कर ,
मात-पिता की गोद हिये।
उधर गगन में पंछी कलरव,
घूम-घूम के झूम रहे।
इधर धरा पर नदियों का जल ,
मनभावन हिलोर लिए।
उधर दूर पर शिखर बिंदु तल ,
बैठा योगी जप तल्लीन।
इधर प्रिया की अनुगूंजों से ,
प्रियतम का दिल जाये झूम।
इधर पिता भी व्यग्र हो उठे ,
माता कहती-बड़ी हुई।
कुछ तो देखो दौड़ भाग कर ,
पीले करने है अब हाथ।
मौन प्रतिउत्तर पिता कंठ है ,
भावों में उत्साह की गूँज।
धीरे-धीरे पवन बहे है ,
मन की गति आनंदित सूंघ।
झूम-झूम के नाच रहा मन,
अंतर-ही-अंतर में घूम।
कहाँ रहा अब कोई अचरज ,
सभी यथार्थमयी बातें।
मन को गर सब  काबू रखें ,
बात बने, पल में ही हुजूर।
कहाँ डोलती उड़न तश्तरी,
मन को बस काबू कर लो।
सब कुछ मिलेगा इस धरती पर ,
मन तो बड़ा ही सच्चा है।
कच्चा इसको मत होने दो ,
मन तो एकदम जच्चा है।
प्रसव वेदना का वह क्षण बिहवल ,
बाकी तो खुशिया ही हैं।
इसी तरह से मन अवलोकन ,
मन तो एकदम अच्छा है।


उमेश चंद्र श्रीवास्तव-    










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