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Saturday, December 3, 2016

बड़े मजबूर हम तो है

बड़े मजबूर हम तो है, यही कहते समझ कर के।
हुआ जो फैसला- अच्छा, बहुत ही अच्छा लगता है।
चलन से पाँच सौ का नोट "औ" हजार के बंद हुए।
कथन उनका यही तो है, इसी से कला धन बंद हो।
इसी बस एक फैसल से, वे भ्रष्टाचार मिटायेंगे।
हुजूरेआला- मेरी आपसे इतनी गुज़ारिश है।
 कसम से सच ही तुम बोलो, वो शादी कैसे होती है।
गरीब दस हजार को तरसे, अमीर करोड़ो खर्चा कर।
पता नही पैसा कैसे बैंक, उनको दे- भुना देता।
है कौड़ी दूर की तो है, मगर यह बात बेमानी।
सयानी दुनिया लगती है, सयाने नेता है सारे।
वो कहते देश बदलेगा, ज़रा तकलीफ तो कर लो।
कसम से वो बचाव भी- बड़ी तरकीब से करते।
पता नही कुर्सी खातिर तो, नही हिकमत तो अच्छी है।
सभी ही जानतें है, बात- यह एकदम से पक्की है।
पुराना रूतबा जाएगा, सभी सामान्य हो जाए।
मगर सत्ता बताये- तब कहा अम्बानी जायेंगे।
कहा पर टाटा बैठेंगे, कहा बिड़ला पधारेंगे। (आगे कल.... )
                                                                                       -उमेश चंद्र श्रीवास्तव 

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