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Tuesday, December 27, 2016

आंसू छलका, बीत राग की - 3

आंसू छलका, बीत राग की ,
याद पुरानी आयी है।

कहाँ मिलेगी अब जीवन में ,
उसकी वह मंजुल रातें।
रातों का था सफर सुहाना ,
जीवन की जो थाती है।
वाह रे!प्रकृती तेरी महिमा !!
रूप रंग के सागर तुम।
कब जीवन में आनंदित स्वर ,
कब रंगों का बदरंग रंग।
तेरी बातें-तू ही जाने ,
मुझको बस यह पता हुआ।
ऐसे जीवन ही चलता है ,
कोई आया यहाँ नया।
पतझड़ जैसे मौसम का भी ,
मूल्य रहा जीवन भर में।
वह रे! प्रकृती !!
तेरा रूप सलोना है।
मनभावन सा दर्शन तेरा ,
कभी धूप है, कभी है छाया।
कभी रात की अंधियारी है ,
जीवन भी चलता ऐसे।
कभी रूप की फुलवारी है ,
कभी विहंसते लोग यहाँ।
जीवन की इस चक्र धुरी पर ,
जन -मन आते-जाते हैं।
तेरा भी तो आना जाना ,
सबको यहाँ सुहाता है।



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -

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