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Wednesday, December 14, 2016

बात पते की कहना चाहूँ-2

बात पते की कहना चाहूँ ,
मगर सुनेगा कौन यहाँ ?

ऐसे में रणबांकुर वह तो ,
क्या-क्या खेल रचाएंगे।
लोगों के मन के भीतर का ,
भाव कैसे जगवाएंगे।
कहने को तो जग अच्छा है ,
जग सच्चा यह बात सही।
मगर एक गन्दी ही मछली ,
जल को विषाक्त कर जाती।
ऐसा में वो क्या कर लेंगे ,
काम बड़ा भरी भरकम ?
कहाँ-कहाँ की बात बताऊँ ,
सब तो अपने धुन में हैं।
जनता पर थोपा है निर्णय ,
पार्टी वालों को बक्शा।
बीस हजार तक माफ़ चन्दा को ,
कैसे वो बतलायेंगे ?
जनता तो गूंगी बाहरी है,
उसको वह बहलायेंगे।
कहाँ-कहाँ की बात बताऊँ ,
सब कुछ तो है छूमंतर ?



उमेश चंद्र श्रीवास्तव - 

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