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Tuesday, December 13, 2016

बात पते की कहना चाहूँ-1

बात पते की कहना चाहूँ ,
मगर सुनेगा कौन यहाँ ?
सबको पैसा-पैसा प्यारा ,
कौन गुनेगा बात यहाँ। 
सुबह शाम 'औ' रात दुपहरी ,
पैसों की तो माया है। 
भला बताओ ऐसे जग में ,
कैशलेस की क्या छाया ?
क्या होगा, कैसे होगा ?
यह तो छूमन्तर ही जाने। 
बड़े-बड़े सब बोल रहे हैं ,
व्यवस्था की कमी बहुत। 
ऐसे में कैसे होगा ,
कैशलेस का मायाजाल। 
इधर विशेषज्ञ बहुत कहेंगे ,
उधर कर्मचारी की कमी। 
ऐसे में तो समझ परे है ,
बात कहाँ से शुरू करूँ। 
कल्पलोक में जीवन जीना ,
भाता सबको मगर सही। 
जीवन की व्यावहारिक बातें ,
आके मिलती जमीं -जमीं। 




उमेश चंद्र श्रीवास्तव - 








 

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