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Wednesday, November 2, 2016

चन्दन, रोली, आरती

चन्दन, रोली, आरती, हाथ फूल 'औ' माल।
जीवन का सुख इसी में, नित हो गाल गुलाल।
नारी जग की है सखी, गर तुम करलो प्रीत।
वरना वह दुर्गा बानी, हर लेगी हर खींस।
खींस निपोरे जग फिरो, कुछ न होगा काम।
गर तुम प्रेम में रमोगे, जीवन हो सुखधाम।
आथर-पाथर जोड़ना, जीवन का नही मोल।
प्रेम परस्परता बस करो, इसी में जग की जीत।
वरनाो जगत भर, आवारा पशु भात।
कुछ भी न मिल पायेगा, जाते हुए अनाथ।
इसी लिए मैं कह रहा, जीवन एक संगीत।
प्रेम का गो गीत बस, रो बने जगदीस।

उमेश चंद्र श्रीवास्तव-

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