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Saturday, November 19, 2016

अरे गिलहरी , निरी गिलहरी

अरे गिलहरी ,निरी गिलहरी ,तुम तो बनी प्रतीक यहां। 
वो तो बोल रहें हैं तुमको ,तेरे हित में-हितकारक। 
मगरमच्छ को पकड़ेंगे वो ,तेरे रक्षा के खातिर। 
इतना बड़ा खेल है खेला ,अब तू बनी प्रतिष्ठा सूचक। 
निरी गिलहरी-तुम ज्ञानी हो या ध्यानी हो ,न जानें । 
तेरे ऊपर वार जा रहे -मुक्तक पढ़ने वाले लोग। 
तुमको देखा है धरती पर ,दौड़ भाग के दाना चुनते। 
तू होशियार बहुत साधक है ,दाने खाने हेतु डोले। 
क्या विचार का पुंज है तुझमे ,ये क्या जाने,बस बोले।
तुझपर रपट लिखाना मुश्किल ,खूब पहचान है-उनने। 
तू सुन सकती ,डोल,बोल सकती ,तू -तेरी भाषा अटपट। 
कुछ ही जानकर हैं होते ,जो तेरी बोली पहचाने। 
इसी लिए वो बोल रहे हैं ,तेरी भाषा के दिग्दर्शक। 
हम क्या जाने वो पहचाने ,तेरी नियत चाल विचार ?
इसीलिए -तुझे लक्ष्य कर रहे ,तू छोटी -जब चाहे -तुझको। 
मगरमच्छ को पकड़ेंगे वो,घड़ियालों को माफ़ किया। 
देखो -कैसे पार करेंगे ,गिलहरी तू चुप सुन ले। 
वाद और विवाद में सारे ,टर-टर पीछ राग बोले।
पहला काम किया है उनने ,ऐसा कहते वही ही लोग। 
सुनो गिलहरी लाइन में हो , मगरमच्छ अब होंगे विलीन। 
कितना सुंदर महल अदृश्य ,अंधी गिलहरी,गूँगी गिलहरी। 
डरी और सहमी गिलहरी ,देख क्या-क्या तेरे लिए अब?
कहते हैं वो शब्दों के पुंज ,मगरमच्छ 'औ' गिलहरी। 
दोनों से वो मुक्त बनेंगे ,अब देखेंगे -ओ-गिलहरी। 
अपने को वो क्या कहते हैं ,निरी गिलहरी सुनले तू। 
अरे गिलहरी मत तू नाच ,माना बोल नही सकती तू। 



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -




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