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Thursday, November 10, 2016

बोट-नोट का चक्र चला तो

बोट-नोट का चक्र चला तो ,
दुनिया हो गयी फानी। 
अमरीका में बोट का डंका ,
ट्रम्प बने गुणखानी।
भारत में नोटों की महिमा ,
बड़-बड़ हो गए पानी। 
पासा फेका ऐसा -उनने ,
चारो खाने चित। 
क्या बोलें ,क्या-क्या खोलें ?
सिट्टी-पिट्टी गुम। 
मात्र यही कथन है वाजिब ,
काम हुआ है अच्छा। 
मोदी तुमने ठोका -
ताल-तुम्हारे में सब हो गए रुंध, 
बड़े-बड़े तूफानी। 
धन्य-धन्य हे भारत सुत तुम ,
तुमको कोटि प्रणाम। 
जनता का भी खट्टा-मिट्ठा ,
अनुभव बाटो अविराम। 
यही तुम्हारा उद्घोष ,
रमे हुए जो सब में। 
समझो-दूर दर्शी तुम तो हो ,
बात समझ लो मेरी। 
बस यही आकांक्षा तुमसे ,
स्वार्थ से उठ कर सोचो। 
आना-जाना कुर्सी का तो ,
लगा हुआ है रहता।
कर जाओ वह काम भी प्यारे ,
बन जाओ सुत पक्के। 
भारतवासी 'औ' भारत माँ ,
तुम्हे देंगे आशीष। 
बढ़ो , करो बस एक काम तुम ,
अच्छे-अच्छे भाई। 
मानव मन  में धर्म की आस्था ,
अपनी-अपनी होती। 
यही हमारा धर्म मनुज है ,
विमर्श करो , कुछ सोचो। 


उमेश चंद्र श्रीवास्तव -

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