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Tuesday, November 1, 2016

हिमंग शुभ्य भारती

A poem of Umesh chandra srivastava


हिमंग शुभ्य भारती ,तरंग ,उमंग उकारती।
विहंग दंग देखते , तिरंग ज्ञान भारती। 
कहे चलो ,कहे चलो, मिटे जनों की कालिमा। 
प्रफुल्लित होये लालिमा , प्रसन्न झूमते चलो। 
                                    कहे चलो, कहे चलो। 
बिगत तो बीत अब गया, आगत की सोच ज्ञानती। 
निर्विघ्न मार्ग हो प्रशस्त , सुधि बने सभी ये जन। 
यही है आश भारती ,कहे चलो ,कहे चलो। 
नगर-नगर ,डगर-डगर ,चमन हो गुल चषकमयी। 
गमक में उसके झूमते , चले नगर -नगर सभी। 
कहें सभी-सभी यहाँ ,है भारती , है भारती। 
                                        कहे चलो कहे चलो। 
प्रताप ,उनका शौर्य है ,उल्लास उनकी दृष्टि है। 
सुपुष्ट देहं  धारियों , स्वदेश के पुजारियों। 
कहे चलो , कहे चलो ,तिरंगा मेरी शान है। 
यह भारतीय की शान है ,उठा इसे कहे चलो। 
                                        कहे चलो , कहे चलो। 
न कोई सर उठा सका , न पार कोई पा सका। 
भुजंग जितने आ डटे , हटा, हटो कहे चलो। 
कहे चलो ,कहे चलो ,सब प्रेम भाव पास हो। 
बस समृद्धि की आश हो ,सुसंस्कृत हों जन सभी। 
                                        कहे चलो ,कहे चलो। 


उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 










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