month vise

Thursday, October 6, 2016

चौखट से बेटी विदा हुई ,

चौखट से बेटी विदा हुई ,
पापा के आंसू भर आए। 
माता , बहना 'औ' भाई भी ,
सिसके-सिसके जीभर रोये।
जाये जिस घर मेरी बेटी ,
ससुराल का वह सम्मन करे। 
पति,सास,ससुर,ननद,बुआ ,
सब को ही नित्य प्रणाम करे। 
सेवा से अपनी बेटी तो ,
सब जन के मन  हरषाये।
विध्वंसक बातें कभी न हों ,
सदभाव की अमर बेल बढे।
बेटी तुम वहां रहो ऐसा ,
उनके कुल का ही नाम बढे।
पापा तो दुआएं देते हैं ,
तेरा घर सदा खुशाल रहे।
कष्टों की आंच कभी न हो ,
तेरे ससुराल की शान बढे।
तू हँसी-खुशी से रहे वहां ,
पापा की छाती फूल बढ़े।
पापा का आशीष यही बेटी ,
तू फूले-फले खुशहाल रहे।



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -

No comments:

Post a Comment

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...