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Monday, October 24, 2016

मनुष्य प्रतापी वीर हो तुम।

घुट-घुट करके मत जिओ तुम ,
मनुष्य प्रतापी वीर हो तुम।
जीवन पहर-पहर पर लेता ,
अग्नि परीक्षा चलने दो।
अग्नि में तप करके सोना ,
और खिला खिल जाता है।
वैसे ही जीवन चलता है ,
लक्ष्य करो पथ डट जाओ।
अगर-मगर सब कुछ चलता है ,
जीवन की संगतियाँ हैं।
जो भी डरा ,हटा निज पथ से ,
समझो वह गल ताल मिला। 
ऐसे में क्या घबराना है ,
मनुष्य प्रतापी वीर हो तुम।



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -

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