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Saturday, October 15, 2016

मुझे कुछ फूल खिलाने दो

मुझे कुछ फूल खिलाने दो ,जगत में इसीलिए आया हूँ। 
सजन को पास तो आने दो ,जगत में इसीलिए आया हूँ। 
उन्हें कुछ नखरा करने दो ,जगत में इसीलिए आया हूँ। 
उनकी बातों में दम है ,जगत में इसीलिए आया हूँ। 
सुधियों को तजा होने दो ,जगत में इसीलिए आया हूँ। 
थोड़ा प्यार तो होने दो ,जगत में इसीलिए आया हूँ। 
नज़र का तीर तो चलने दो ,जगत में इसीलिए आया हूँ। 
फकत एक झीनी चादर है ,जगत में इसीलिए आया हूँ। 
जरा कुछ झीना हटने दो ,जगत में इसीलिए आया हूँ। 
बहुत ही बातें करनी हैं ,जगत में इसीलिए आया हूँ। 
थोड़ा वह बात तो खुलने दो ,जगत में इसीलिए आया हूँ। 
उनको लिपट के कहने दो ,जगत में इसीलिए आया हूँ। 
जरा कुछ खंजर चलने दो ,जगत में इसीलिए आया हूँ। 
जरा कुछ कविता कहने दो ,जगत में इसीलिए आया हूँ। 
उन्हें कुछ व्यंग्य तो करने दो ,जगत में इसीलिए आया हूँ। 
जरा कुछ संतति बढ़ने दो ,जगत में इसीलिए आया हूँ।  
जरा संपाति बनने दो ,जगत में इसीलिए आया हूँ। 
भरा जो रावण अंदर है ,उसे बहार क्यों जलाते हो?
जरा मनमंथन करने दो ,जगत में इसीलिए आया हूँ।  


उमेश चंद्र श्रीवास्तव -

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