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Thursday, October 13, 2016

कजरारे नयन नहीं फिर भी ,

कजरारे नयन नहीं फिर भी ,
मुखड़े पर दमक तुम्हारी है।
है पांव में पायल नहीं मगर ,
रुनझुन की थाप तुम्हारी है।
चलती हो ऐसा लचक-लचक ,
अंदाज़ तुम्हारे कुछ ऐसे ,
बादल में बादल चल जैसे।
कुछ तनिक जरा रुक जाओ तुम।
कुछ बरसो बदल सा तुम भी।
न हो पूरा पर कुछ-कुछ तो ,
रस बूँदें ठहर इधर भी तुम ,
कुछ-कुछ-कुछ तो टपका जाओ।
दीवाने तेरे बहुत मगर ,
तुम रुक जाओ , तुम रुक जाओ।
अंदाज़े तीर चला बदल ,
ओ बदल ,तेरा सवागत है।
बदल सा तुम कुछ कर जाओ।
              कजरारे नयन नहीं फिर भी ,
              मुखड़े पर दमक तुम्हारी है।

उमेश चंद्र श्रीवास्तव -

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