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Wednesday, October 19, 2016

दोनों रचनाएँ महाग्रन्थ -3

यह भारत देश , यह भारत देश।
आपा-धापी में जीते सब।
भागम-भाग मची भाई।
बच्चे घर में जो छोटे हैं ,
उनके लिए है प्लेस्कूल।
माता 'औ 'पिता को कहाँ रही ,
बच्चे को दे निज मन ममता।
अब दौड़म- दौड़ है मची हुई ,
बच्चा पल जाये पैसों बल।
कल-कल जीवन अब कहाँ रहा ,
कल-कल में जुटे हैं सभी मनुज।
पैसे के खातिर काट-पीट।
मिल जाये कुर्सी उच्च अगर।
सब मेल-मिलाप जुगाड़-वाड़ ,
कुर्सी के लिए मची भाई ,
अब तुम्हीं बाताओ ऐसे में,
क्या बच पायेगी निज निजता।
यह भारत देश ,यह भारत देश।
नेता अभिनेता बने हुए।
जैसी पब्लिक वैसा बोले।
धमनी में रक्त प्रवाहित जो ,
उसका भी होता मोल-तोल ,
साहित्य जगत के पुरोधों,
अपनी ही बातें रखते हैं ,
जनहित, जनइच्छा से बिसरे ,
वह रचते सब कुछ अपने हित ।
अब कहाँ 'गोदान 'लिखा जाता।
अब 'होरी' की मरजाद कहाँ ?
अब 'धनिया' जैसी कल्पतरू ,
नारी भी मिलती कहाँ इधर।
सब कुछ ,सब कुछ है गड्ड-मड्ड ,
अब देश की किसको चिंता है।
अपना हित ,अपना कुनबा -
बस इसी बात की फिकर हुई।
 क्या -क्या बतलायें बात तुम्हे ?
सब कुछ तो होता दीख रहा।
ऐसे में भला मेरे भाई ,
क्या-क्या बतलायें अब तुमको ?
यह भारत देश ,यह भारत देश।

उमेश चंद्र श्रीवास्तव -




  

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