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Saturday, October 8, 2016

दशहरा का मेला-2

यह मेला है भाई, दशहरा का मेला।
चला जा रहा है,  यहाँ रेल पे रेला।
डमाडम-डमाडम अब डमरू बजा है।
वह चौकी में भोले, ठुमुक नाचते हैं।
उमा सुकुमारी है आती लजा के।
है कहती- भगेड़ी है कहा भांग पीसू।
है पौरुख नही अब, कहा मैं तो जाऊ।
बिहँसते हुए बोल पड़ते है शंकर। 
बिना पीसे लाओ मैं भोग लगाऊं।
मनोहर छटा है यह चौकी निकलती।
चली जा रही है, चली आ रही है।
वह मुरली की चौकी जहा कृष्णा-राधा।
मधुर तान बंसी यह अद्भुत छटा है।
सभी देख बोले कन्हैया है नटखट।
वो देखो छकाते हैं, राधा को मोहन।
औ राधा भी ऐसी मगन हो रही है।
मुरलिया की धुन में अगन हो रही हैं।
यह मेला है भाई, दशहरा का मेला।

दशानन की चौकी विकट की सजी है।
वह देखो- अब दूजी चौकी भी आयी।
जहा वीर सैनिक फतह कर रहे है।
यह भारत है माता सजी खूब चौकी।
उन्हें वीर सैनिक नमन कर रहे है।
बहुत से ही बिम्बो की झांकी मिलेगी।
सभी के ह्रदय में रंगोली खिलेगी।
यह मेला है भाई, दशहरा का मेला। (शेष कल)
                                                     -उमेश चंद्र श्रीवास्तव 

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