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Friday, September 9, 2016

ओ जगत के प्राणी

मन की बात नहीं होती है ,
राजतंत्र की वाणी ।
लोगतंत्र में जनमन चलता ,
ओ जगत के प्राणी।
यह है भरत वर्ष ,
यहाँ की समृद्धि अतुलित है।
धन हो , चाहे सम्पदा हो ,
सब हैं यहाँ पर अक्षुण।
फिर कहे का 'बोल 'कर रहे -
चार दिनों के प्राणी।
माना  मिला  तुम्हे सत्ता में ,
बड़ी महत्ता भाई।
पर मत ऐंठो ,पर मत घूमो ,
देश  की पूंजी पर तुम।
बने , देश को आगे बढाओ ,
क्यों लेते  प्रतिशोध।
शोध कराओ तुम ऐसा कुछ ,
न हो कहीं विरोध।
अतुल तुम प्राणी होंगे।
वार्ना जनता बड़ी चतुर है ,
मत समझो ,नादानी।
सब कुछ मौन सुने जनता यह ,
सब कुछ जाने भाई।
वाणी का भी मतलब ,
जनता नहीं भुला पाती कुछ।
समय तो आने दो तुम ,
जनता करेगी फैसला।
जैसे गए, वही ही होगा ,
सम्हालो ओ तुम प्राणी।
अभी समय बहुत है  बाकी ,
गलती मत दोहराओ।
साफ - साफ तुम बात करो बस ,
जान को मत भरमाओ।
यह जनता खामोश रहेगी ,
नहीं कहेगी कुछ भी।
डींग हांक कर, सीना  ताने ,
मत गर्वित तुम डोलो।
बोलो प्यारे देश के रक्षक ,
सत्य बात ही बोलो।
मन से कलुषित बात हटाकर ,
जनवाणी को तौलो ।


-उमेश चंद्र श्रीवास्तव 

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