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Thursday, September 22, 2016

पास दर्पन हो तो खुद स्वयं देखिये

पास दर्पन हो तो खुद स्वयं देखिये।
आप अपना खुदा  सब समझ जायेंगे।
किसका अच्छा किया, किसका सर है कलम,
दर्पनों में सभी कुछ नज़र आएंगे।
मुस्कुराने की आदत यहाँ पल रही ,
बस खुदी पर जरा मुस्कुरा दीजिये।
यह है प्यारा जगत , यहं सुखन हैं बहुत ,
उनकी कविता को बस हंस दुआ दीजिये।
वे स्वयं ही बनेंगे , दादू, मीरा 'औ' गंग ,
बात कबिरा की बस गुनगुना लीजिये।
क्योंकि कबिरा की बातों में सच है बहुत ,
केवल कबिरा की साखी सुना दीजिये।  

उमेश चंद्र श्रीवास्तव -

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