month vise

Tuesday, September 20, 2016

ज्ञान की गंग धारा बहेगी यहाँ

ज्ञान की गंग धारा बहेगी यहाँ।
ज्ञान चक्षु को जरा खोल कर देखिये। 
इसमें आगम -निगम सब मिलेगा तुम्हे।
कुछ पहर तो जरा साधना कीजिए।

सब सुखों का है सागर , यह प्यारा जगत।
फूल,फल है यहाँ ,वनस्पतियां बहुत।
जल का स्रोता यहाँ ,ज्ञान का पक्षधर।
ज्ञान गंगा में डुबकी लगा लीजिए।

वेद कहते सदा ,ज्ञान भंडार है।
उपनिषद का यहाँ ,बहुमुखी द्वार है।
'औ' पुराणों में किस्से हजारों पड़े।
इन सम्मुच्चय को बस गुनगुना दीजिये...(क्रमशः)

उमेश चंद्र श्रीवास्तव -

No comments:

Post a Comment

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...