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Tuesday, September 13, 2016

गर तुम मेरा साथ न दोगे

गर तुम मेरा साथ न दोगे ,
तो क्या मैं जी पाउँगा।
भंवर पतंगे सा यह जीवन ,
डोल-डोल भून जाऊंगा।

दूर गगन पर आसमान की ,
चादर चिकनी चिकनेदार।
उसमे चंदा की है बिंदी,
कितनी मनोहर है चटकार।

जैसे कोई सीता सजी हो ,
मुखड़ों पर झल-मल चमके।
दन्त, नासिका ,नयन कमल से ,
गालों पर गुलबाग लिए।

छन -छन आती मंद बयारें ,
घूंघट का पट खोल रही।
हिरन थिरक कर नाच उठे हैं ,
मानो सब गुलज़ार हुआ।


-उमेश चंद्र श्रीवास्तव 

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