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Saturday, September 10, 2016

मुक्तक

                         ( १ )                        
राजनीति में तिकड़मबाजी , अब कुछ हो गयी ज्यादा।
आधे में सब सेवक -वेवक, आधा खाये प्यादा। 

                       (२ )
जनता मिमियाए तो उसको, मिल  जाता है दाना  । 
बाढ़ ,सूखा के नाम से उसको ,मिल जाता हर्जाना। 

                       (३ )
बोट के खातिर सब कुछ करते , बोट है माई-बाप।
 इस के पर जो बात करेगा , उसका रास्ता साफ। 

                        (४ )
नेता जी तो सदा -सदा से , मंचों पर मुस्काएं। 
देख-दाख वह भीड़-भाड़ को , सेवक पर हरसाये। 
सेवक पर हरसाये तो फिर ,दे दिया खूब 'होना '। 
सेवक का कैरेक्टर कैसा ,नहीं है इसपे जाना। 

                          (५ )
नहीं योग्यता कोई चाहिए , ना शिक्षा की डिग्री। 
नेता बनना हो तो चाहिए ,मात्र चमचागिरी। 

                          ( ६ )
भइया अब अखबारनबीसों की , हो गयी है चांदी । 
लेख लिखो ,रिपोर्ट लिखो काटो खूब अमादी। 

                                (७ )
आया मौसम चुनाव का ,लगे पोस्टर बीस। 
नेता जी मिमिया रहे हाथ जोड़ कर खीस।                          
      


 -उमेश चंद्र श्रीवास्तव 

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