सखे, मत मिथ्या वाणी बोल।
घर-दुआर सब, महल अटारी,
क्या है इसका मोल?
सखे, मत मिथ्या वाणी बोल।
रंगमहल, यह तन कुम्भ है,
लुढक गया तो तूटेगा,
क्यों इतराता, मांझी बनकर,
क्या इसका है मोल?
सखे, मत मिथ्या वाणी बोल।
रूप रंग, माया की बातें,
व्यर्थ रमा है इसमें प्राणी,
व्यथित-थकित होकर के तू भी,
क्यों भागता है गोल?
सखे, मत मिथ्या वाणी बोल।
राम रमे हैं, कृष्णा रमें हैं,
सारे संघ-संघाती तेरे,
क्या रह पाए, तू ही बोल?
सखे, मत मिथ्या वाणी बोल।
सुध-बुध खो कर,
लंपट, कामी, लोभ मोह वश,
भटक रहा तू,
क्या है इसका तौल?
सखे, मत मिथ्या वाणी बोल।
-उमेश श्रीवास्तव
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