गीत
विचारों के अनुपम ही सागर मे डूबा,
उधर जा रहा था, इधर आ गया मैं |
नहीं चाहिए कोई अधरों का पानी ,
नहीं है मसलना अब कोई जावनी ,
फकत वह नशा था ,वह दूषित था पनी|
विचारों के अनुपम ही सागर मे डूबा,
उधर जा रहा था, इधर आ गया मैं|वह नाजुक काली थी, उसे अब सँवारो ,
वह फूली फली थी , उसे अब बढ़ाओ ,
रगों मे भी उसके भरो वह कहानी ,
वह मोहताज न हो , स्वयं आत्मनिर्भर ,
उसे बस बताओ प्रबलता की बानी |
विचारों के अनुपम ही सागर मे डूबा,
उधर जा रहा था, इधर आ गया मैं|
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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