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Saturday, August 13, 2016

गीत


गीत 



विचारों के अनुपम ही  सागर मे डूबा,
उधर जा रहा था, इधर आ गया मैं |
नहीं चाहिए कोई अधरों का पानी ,
नहीं है मसलना अब कोई जावनी ,
फकत वह नशा था ,वह दूषित था पनी|


                      विचारों के अनुपम ही  सागर मे डूबा, 
                          उधर जा रहा था, इधर आ गया मैं|


वह नाजुक काली थी, उसे अब सँवारो ,
वह फूली फली थी , उसे अब बढ़ाओ ,
रगों मे भी उसके भरो वह कहानी ,
वह मोहताज न हो , स्वयं आत्मनिर्भर ,
उसे बस बताओ प्रबलता की बानी |


                          विचारों के अनुपम ही  सागर मे डूबा, 
                          उधर जा रहा था, इधर आ गया मैं|

उमेश चंद्र श्रीवास्तव -

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