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Wednesday, July 20, 2016

बूंद

बूंद टप-टप नभ गगन से,
आ गया मौसम सुहाना। 
नाच गा लो रंग मस्ती,
हो गया हर्षित ज़माना। 
तपती गर्मी से मिला "औ",
खिल गया चेहरा सुहाना। 
अब तो झूमो बाग़वानी,
खेत में बो लो अब दाना। 
बाह फड़की तन तरंगित,
मन हुआ अब आबदाना। 
आ गयी पंछी तितोलि,
घूमते वे नभ गगन में। 
चुम लेते वह धरा को,
पा रहे चारा वो दाना। 
मन प्रफुल्लित हो गया अब,
छेड़ता मौसमी गाना।   
                                      -उमेश  श्रीवास्तव 

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